29 फरवरी काे १६वीं पुण्यतिथि पर विशेष
मृत्यु एक अटल सत्य है! पर कुछ जीवन ऐसे होते हैं जो मृत्यु के बाद भी अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
ऐसे ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे विजयनगर (Bijaynagar, Kamrup) के स्वर्गीय पदम जैन। उनका जन्म सन 6 जनवरी, 1952 काे तत्कालीन पलाशबाड़ी (Palashbari) शहर में हुआ था। पिताजी स्व. भंवरीलाल बगड़ा व माता स्व. भंवरी देवी बगड़ा ने जन्म से ही बालक पदम काे धार्मिक संस्कार दिये थे। उन्हीं की बदौलत आज पूर्वांचल जैन समाज में जैन धर्म को पत्रकारिता के जरिए व समय-समय पर विभिन्न धार्मिक पुस्तकों व पत्रिकाओं का प्रकाशन करके जैनधर्म का प्रचार-प्रसार करने में श्री जैन अहम भूमिका निभाई।
स्व. जैन ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय (Gauhati University) से कला शाखा में स्नातक होने के बाद कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया लेकिन तत्कालीन विषम परिस्थितियों की वजह से वे परीक्षा में न बैठ सके। उन्हीं दिनों असम में प्रारंभ हुए ‘विदेशी भगाओ आंदोलन’ में हिस्सा लेकर असमिया जाति की अस्तित्व की लड़ाई में खुद को झोंक दिया। आपने ‘कल्पना’ (Kalpana Magazine) नामक त्रैमासिक पत्रिका के जरिये स्थानीय लोगों की आवाज बुलंद की। इस पत्रिका की बढ़ती लोकप्रियता के चलते आपको इस पत्रिका का सम्पादन अंग्रेजी-हिंदी व असमिया भाषा में करना पड़ा। इसी पत्रिका के जरिये आपने महावीर जयंती, पंचकल्याणक आदि विभिन्न जैन धार्मिक अवसरों पर विशेषांक प्रकाशित कर जैनधर्म को गैर-जैनों के बीच भी लोकप्रिय करने का आजीवन प्रयास करते रहे।
श्री जैन का विवाह डिब्रूगढ़ (Dibrugarh) निवासी श्रीपालजी पाटनी की उच्च शिक्षित सुपुत्री सुमित्रा देवी के साथ हुआ। श्री जैन की पत्नी डिब्रूगढ़ विश्वद्यिालय से डिस्टिंसन सहित कला स्नातक हैं। आपके दो पुत्रियां कल्पना व रचना तथा एक पुत्र जिसका नाम दिगम्बर है।
आप विजयनगर लॉयंस क्लब द्वारा प्रकाशित पत्रिका विजय तथा दक्षिण कामरूप पत्रकार संघ द्वारा प्रकाशित स्मारिका के सह- सम्पादक भी रह चुके हैं। आपने आगम के मूल सिद्धांतो को जनसाधारण के समक्ष रखने हेतु ‘आगम दर्शन’, णमोकार महामंत्र का महात्म्य, आचार्य शांतिसागर, सुपार्श्व वाच आदि विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का सम्पादन किया। आपके द्वारा लिखे गये ज्ञानवर्धक लेख समय समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
आपकी इसी लेखन प्रतिभा को देखते हुए उत्तर-पूर्वांचल के सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र ‘पूर्वांचल प्रहरी’ का संवाददाता भी नियुक्ति किया गया। आप ‘पार्षद’ के संवाददाता रह चुके हैं तथा भारतवर्ष के जैनियों का सर्वाधिक प्राचीनतम ‘जैन गजट’ साप्ताहिक समाचारपत्र के विजयनगर संवाददाता के पद पर आजीवन कार्यरत रहे। आप दक्षिण कामरूप पत्रकार संघ के कार्यकारिणी सदस्य, असम साहित्य सभा के आजीवन सदस्य, स्थानीय दिगम्बर जैन माध्यमिक विद्यालय के अध्यक्ष पद पर कार्यरत थे। आप श्री दिगम्बर जैन गर्ल्स हिन्दी हाईस्कूल के सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य थे। आप स्थानीय कई सामाजिक संस्थाओं के साथ भी गहराई से जड़ित थे। आप असम की सबसे प्रतिष्ठित साहित्य संस्था ‘असम साहित्य सभा’ के अधिवेशनों में भी कई बार सम्मिलित हुए थे। असमिया भाषा-साहित्य की सेवा करने के कारण सामाजिक संगठन ‘पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन’ के गुवाहाटी में आयोजित अष्टम अधिवेशन में आपका सामाजिक रूप से अभिनन्दन किया गया।
सामाजिक कार्यों के साथ ही स्व. जैन का व्यावसायिक जीवन भी काफी उज्ज्वल रहा। उन्होंने काफी कम समय में यूनाइटेड इंडिया इंश्यूरेंस कंपनी लिमिटेड (भारत सरकार) की विजयनगर शाखा के मुख्य शाखा प्रबंधक के पद पर आसीन होकर सुचारू रूप से कार्य करते हुए सन् 2004 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गये थे।
सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् उन्होंने अपनी जन्मभूमि विजयनगर में ही शराईघाट इलेक्ट्रॉनिक्स, इन्फोटेक नामक शोरूम खोलकर अपना व्यावसायिक आधार भी जल्द ही मजबूत कर लिया। जैन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा होने की वजह से उन्होंने हाल ही के वर्षों में सम्पूर्ण भारतवर्ष के जैन तीर्थों की कई बार यात्राएं भी की थी।
सब कुछ ठीक चल रहा था पर 29 फरवरी 2008 की सुबह को नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था।
सबके चहेते, संयमशील, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी धर्मपरायण श्री बगड़ा सभी को रोता बिलखता छोड़ एकाएक नश्वर देह त्यागकर स्वर्गवासी हो गये। श्री बगड़ा अपने पीछे अपने माता-पिता, धर्मपत्नी सुमित्रा जैन, पुत्र दिगम्बर, दो पुत्रियाँ रचना व कल्पना, 5 भाईयों व 5 बहनों का भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं।
असम में हिन्दी पत्रकारिता (Hindi Jounralism) व जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में स्व. पदम जैन का योगदान उल्लेखनीय है। पत्रकारिता के शुरुआती समय से ही मुझे भी उनका आशीर्वाद व मार्गदर्शन प्राप्त करने का साैभाग्य मिला। हमें सदा उनकी कमी खलेगी। मृत्यु हमें जीवन की नश्वरता की याद दिलाती है। उनकी 16वीं पुण्यतिथि पर हम उन्हें स्मरण करते हैं। पदम जैन जी अब हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका कार्य हमें प्रेरित करता रहेगा।